गैरकानूनी गिरफ्तारी – एक गंभीर मानवाधिकार हनन
गैरकानूनी गिरफ्तारी – एक गंभीर मानवाधिकार हनन
🚨 यदि किसी व्यक्ति को बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के, बिना प्राथमिकी (FIR) दर्ज किए, या बिना मजिस्ट्रेट के समक्ष 24 घंटे के भीतर प्रस्तुत किए हुए हिरासत में लिया जाता है — यह पूरी तरह गैरकानूनी गिरफ्तारी मानी जाती है।
📜 भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 – जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार – ऐसे हर प्रकार के अन्याय से नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करता है।
⚖️ भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की निम्न धाराएं इस संदर्भ में लागू होती हैं:
धारा 41A: बिना गिरफ्तारी के पूछताछ के लिए नोटिस।
धारा 46: गिरफ्तारी की प्रक्रिया।
धारा 57: 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत करना अनिवार्य।
धारा 58: गिरफ्तारी का रिकॉर्ड और अवगत कराना।
धारा 167: हिरासत की सीमा।
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📣 यदि कोई गिरफ्तारी इन कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन करती है:
यह गैरकानूनी और असंवैधानिक मानी जाती है।
पीड़ित व्यक्ति को मानवाधिकार आयोग, उच्च न्यायालय, या राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में शिकायत दर्ज करने का अधिकार है।
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